Beautiful Designed Hanuman Chalisa Pdf Download

Sahi Khabar
6 Min Read


हनुमान चालीसा: भक्ति का तार, तथ्यों का झंकार

हनुमान चालीसा सिर्फ भक्ति का गीत नहीं, ये तो आस्था का पुल, शौर्य का मंत्र और हिंदू धर्म के दिल की खिड़की है। 40 चौपाइयों और तीन दोहों से बुनी ये कविता दिव्यता के सागर में गोते लगाती है, मगर इसके नीचे छिपे रोचक तथ्य हमें इतिहास और साहित्य की गहराइयों में ले जाते हैं। 

1. जन्म कथा: 16वीं सदी में संत तुलसीदास जी द्वारा रचित हनुमान चालीसा गहरी भक्ति से उपजी। किंवदंती है कि चालीसा पूरा न कर पाने पर तुलसीदास को स्वयं हनुमान जी ने दिव्य सहायता दी। ये कहानी रचना को रहस्यमय बनाती है, इसके ईश्वरीय मूल को दर्शाती है।

2. चालीस का रहस्य: चालीसा के केंद्र में 40 चौपाइयां हैं। ये संख्या महज संयोग नहीं। हिंदू धर्म में 40 का अंक पूरापन और परिवर्तन का प्रतीक है। चालीस दिन का तप, हिमालय से बहने वाली चालीस नदियां – ये ऐसे उदाहरण हैं जहां ये संख्या गहराई से समाई है।

3. रामायण की गूंज: चालीसा कोई अलग रचना नहीं, ये तो रामायण को हमारे दिलों तक पहुंचाने वाला पुल है। हर चौपाई हनुमान के वीरतापूर्ण कार्यों – लंका जलाने से लेकर संजीवनी लाने तक – के साथ गूंजती है। चालीसा का पाठ रामायण को फिर से जीना है, महाकाव्य का जीवंत पुनर्पाठ है।

4. विज्ञान का स्पर्श: कुछ लोग चालीसा के “युग सहस्रों के यवन जाके हैं…” को हनुमान द्वारा तय की दूरी से जोड़ते हैं। इस श्लोक पर आधारित गणना, आश्चर्यजनक रूप से, पृथ्वी और चंद्रमा के अनुमानित अंतर से मेल खाती है, भक्तिमय गीत में वैज्ञानिक जिज्ञासा का तड़का लगाती है।

5. सबके लिए भजन: चालीसा भौगोलिक और सांस्कृतिक सीमाओं को पार करता है। अटूट भक्ति, निस्वार्थ सेवा और अडिग साहस का संदेश दुनिया भर के भक्तों के दिलों को छूता है। मॉरिशस से लेकर त्रिनिदाद और टोबैगो तक, हनुमान चालीसा दिलों को जोड़ता है और आस्था को जगाता है।

हनुमान चालीसा सिर्फ छंदों का संग्रह नहीं, ये आस्था की जीवंत साक्षी है, कविता के जादू का प्रमाण और भक्ति की विरासत का अनमोल खजाना है। हर बार जब हम इसके तारों को छूते हैं, हम न सिर्फ हनुमान से जुड़ते हैं, बल्कि उन सार्वभौमिक सत्यों से भी जुड़ते हैं जो हम सभी के अंदर ही मौजूद हैं।

तो, अगली बार जब आप हनुमान चालीसा की मधुर लय में खोएं, तो याद रखें, ये सिर्फ भजन नहीं, ये एक अनसुनी कहानी है, तथ्यों और आस्था का मनमोहक ताना-बाना है।

दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।


चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।


महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुँचित केसा।।


हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे। कांधे मूंज जनेउ साजे।।
शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वंदन।।


बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।


सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे।।


लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।


सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।


जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।


तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानु। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।


प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।


राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना।।


आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।


नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।


और मनोरथ जो कोई लावै। सोई अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।


साधु संत के तुम रखवारे।। असुर निकन्दन राम दुलारे।।
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।


राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुह्मरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै।।


अंत काल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।


सङ्कट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।


जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बन्दि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।


तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।

दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

आशा है आप हनुमान जी चरणों में उनकी भक्ति में लीन जो जाएं !

Share This Article
1 Comment